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भुखमरी का स्त्रीलिंग

सचिन कुमार जैन

प्रकाशक : विकास संवाद प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8906
आईएसबीएन :8189164155

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भूख की भी जाति होती है, लिंग होता है...

Ek Break Ke Baad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भूख, अब भूख नहीं रह गई है। उसकी भी जाचि होती है, लिंग होता है। भूख की पीड़ा केवल शरीर की पीड़ा नहीं होती।

देश के गोदामों में करोड़ों टन अनाज भरा हुआ है फिर भी गरीब, वंचित औक आदिवासी भूख से मर हे हैं, यह कहकर हमने सत्ता को अदालत में खड़ा कर दिया। दलील दी कि नागरिकों के संवैधानिक व मौलिक अधिकारो का हनन हो रहा है।

अखबारों ने खबरें छापी। कवियों ने कवितायें गढ़ीं और अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों के ढेर लगा दिये। जो सड़क पर नारे लगा सकता था उसने गले की नसें खीचकर नारे लगाये।

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